आज दुनिया भर में सभी तरह के लोग रहते है जो, शाकाहारी या मांसाहारी होते है | लेकिन क्या आपने कभी सोचा है की यदि पूरी दुनिया शाकाहारी हो जाए तो क्या होगा, सभी को खाना केसे मिलेगा |
इसे कई फायदे और कई नुकशान भी है
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार मांस की अधिकता वाले आहार रोजाना 7.2 किलोग्राम कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन का कारण बनते हैं। जबकि शाकाहारी भोजन से केवल 2. 9 किलोग्राम डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। यह पर्यावरण के तो बहुत बेहतर है , लेकिन इसके कुछ नुकशान भी है |
आंकड़ों का समीकरण भी समझिए
यदि एक गरीब आदमी प्रोटीन खाना चाहता है, तो वह रोजाना बादाम नहीं खरीद सकता। मसलन उसके सामने सस्ते दाम पर मांस खरीदना बेहतर विकल्प है। पोषण सुरक्षा के लिहाज से यह तर्क एक हद तक ठीक लगता है।
आपको बता दे की 2018 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार केवल 20 प्रतिशत भारतीय अब शाकाहारी हैं। साथ ही 18 करोड़, यानी क़रीब 15 प्रतिशत भारतीय गोमांसभक्षी हैं या सभी तरह का खाना खाते है |
दुनिया मांस खाना छोड़ दें इससे सिर्फ फ़ायदा नहीं होगा नुक़सान भी हो सकता है
लेकिन इस बात से इंकार नही किया जा सकता है की, शाकाहार और मांसाहार दोनों ही पर्यावरण को संतुलित रखने वाले पिरामिड का अहम हिस्सा हैं। यदि आज सभी लोग शाकाहारी हो जायेगे तो इन सभी के लिए खाने की आपूर्ति करना बहुत बड़ा खतरा बन जाता है |
आज सभी लोगो की अपनी अपनी एक अलग राय होती है, इंसान को क्या खाना है, क्या नहीं। यह उसकी निजी पसंद का मसला है। शाकाहारी लोग चाहते हैं कि पूरी दुनिया शाकाहारी हो जाए और मांसाहारी लोगों का अपना अलग तर्क है। वैज्ञानिक इस मसले पर दो तरह की बातें करते हैं। पहली यह कि ऐसा होना संभव नहीं है। क्युकी सभी जगह पर एक जैसा खाना मिलना मुश्किल होता है, धरती पर खाने का चक्र संतुलित करने के लिए सभी तरह के लोगो का होना आवश्यक होता है | जिसके करण आज खाने की किसी तरह की कमी नही होती है |