संपूरण सिंह के गुलजार साहब बनने तक का सफर – जो खा रहे हैं गालिब के नाम की पेंशन, दिलचस्प है किस्सा।

संपूरण सिंह के गुलजार साहब बनने तक का सफर

पाकिस्तान के दीना में जन्मे 18 अगस्त 1934 गुलजार को आज हर कोई जनता है। लेकिन इनका असली नाम संपूरण सिंह कालरा है। इन्होए अपनी जिंदगी में कई उतार चढ़ाव देखे है, जिसके बाद उन्हें आज यह पहचान मिली है। कुछ ऐसा ही किस्सा संपूरण के साथ हुआ जो आगे चलकर गुलजार के नाम से मशहूर हुए है। उन्होंने 87 साल के जीवन में शानदार सफलता हासिल कर चुके गुलजार ने जो दर्द बचपन में झेला उसे कभी भुला नहीं पाते हैं।

सामने आया भारत-पाक बंटवारे का दर्द

1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौर में गुलजार का परिवार भी पाकिस्तान छोड़कर भारत आ गया था। वह उस समय करीब 11-12 साल के लड़के थे जिनकी आंखों के सामने जिस तरह की हिंसा देखी, कत्लेआम देखा, घर-परिवार को उजड़ते देखा. कच्ची उम्र में ही एक ऐसे जख्म ने उनके अंदर गहरी जड़ें जमा ली जिसके कारण वह अपनी आवाज को शायरी-कविता और किस्सों में उभार देते थे। उन्हें बचपन से ही उन्हें कविता लिखने का शौक था लेकिन उनके पिता का मानना था कि इससे गुजारा नहीं होगा।

संपूरण सिंह के गुलजार बनने का सफर

गुलजार साहब आज हिंदी फिल्मी इंडस्ट्री की सांसों में बसते है। लेकन एक समय पिता की बातें सुन-सुन उन्होंने अपने भाई के काम में हाथ बंटाने के लिए मुंबई आने का फैसला किया, जहा उन्होंने मोटर गैराज में काम करने लगे, लेकिन कविता-कहानी लिखने वाला नाजुक मन भला मोटर गैराज की मशीनी जिंदगी से कब तक तालमेल बैठाता। उन्होए वो काम छोड़ दिया और फिल्मी दुनिया की तरफ अपना रुख किया। उसके बाद उनका सम्पर्क शैलेंद्र जैसे गीतकारों से हुआ। बिमल रॉय को असिस्ट करने का मौका मिला लेकिन जो करना चाहते थे वह अभी भी शुरू नहीं हो पाया। तब उन्हे शैलेंद्र ने सलाह दी कि बिमल रॉय के फिल्मों में गाने लिखो। उसके बाद उन्होंने देखा की संपूरण नाम कुछ जम नहीं रहा और कुछ ऐसा हुआ कि संपूरण ने गुलजार नाम से लिखना शुरू कर दिया और इस तरह से गुलजार नाम से पहचाने जाने लगे।

फिल्मफेयर अवॉर्ड लेने स्टेज पर ही नहीं जा पाए

गुलजार को 1963 में फिल्म ‘बंदिनी’ के लिए फेमस गाना लिखा ‘मोरा गोरा रंग लेई ले, मोहे श्याम रंग देई दे। इस गीत ने गुलजार की सफलता में नींव के पत्थर की तरह काम किया। उन्होंने इसके बाद कई फिल्मो में काम किया उन्हें ‘आनंद’ के लिए जब गुलजार को फिल्म फेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया तो वह उस समय इतने नर्वस थे कि स्टेज पर ही नहीं जा पाए थे उन्होंने यह अवार्ड भी नहीं लिया।

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