72 घंटों तक अकेले ही 300 चीनी सैनिकों से जूझा और अरुणांचल को बचाने वाले जसवंत सिंह रावत की कहानी

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भारत-चीन के बीच के युद्ध लोगों की ज़ुबान पर आज भी है शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे इस युद्ध का किस्सा नहीं मालूम होगा या भूल गया होगा कि किस तरह से भारतीय जनावों ने चीन से युद्ध कर अरुणांचल को उनके बचाया था। हालांकि हमें गर्व है अपने भारतीय जवानों पर और अपने देश भारत पर जो ऐसे वीर जवानों को पैदा करती है उस माँ पर हमें गर्व है, हालांकि आपको तो याद ही होगा कि कैसे अकेले सिपाही जसवंत सिंह रावत चीन के 300 सैनिकों के लिए काल बन गए थे और उन्हें मार गिराया था।

भारत के वीर सपूत राइफलमैन जसवंत सिंह रावत जिन्होंने अकेले 300 चीनी सैनिकों का अकेले सामना किया और उन्हें धूल तक चटाई। चीनी सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा करने का इरादे किया और उन्होंने करीब सुबह के 5 बजे सेला टॉप के नजदीक हमला कर दिया. वहीं मौके पर तैनात गड़वाल राइफल्स की डेल्टा कंपनी ने चीनी सैनिकों का सामना किया.

बता दें कि, उसी गड़वाल राइफल्स की डेल्टा कंपनी का हिस्सा जसवंत सिंह रावत भी थे। जैसे ही उन्हें पता चला वो फ़ौरन चौकन्ने हो गए और अपने साथियो के साथ मिल कर हरकत शुरू कर दी। भारत और चीन के बीच शुरू हुए लड़ाई अगले 72 घंटों तक लगातार जारी रही.वहीं भारत के सिपाही जसवंत सिंह रावत ने अकेले ही चीनी सैनिकों को धूल चटा दी। जसवंत सिंह ने एक प्लैन बनाया और करीब 300 चीनी सैनिकों को मार गिराया। जसवंत सिंह अपने साथियो के साथ मिलकर चीनी सेना को अरुणाचल की सीमा पर रोकने में कामयाब तो हुए लेकिन उन्हें पूरी तरह से हटा नहीं सके हालांकि सुनने में ये भी आया था कि उन्हें पीछे हटने के लिए कहा गया था लेकिन भारतीय जवान जहां एक बार चढ़ाई कर जाएं पीछे नहीं हटते.०

बता दें कि जसवंत सिंह रावत के टुकड़ी के पास सारे गोल बारूद खत्म हो चुके थे लेकिन तब भी उन्होंने हर नहीं मानी, हालांकि ऐसे में चीनी सेना का मुकाबला करना मतलब मौत को गले लगाना था बावजूद इसके जसवंत सिंह पीछे नहीं हटे उन्होने चीनी सेना का डट के मुकाबला किया और अपने दुश्मन के साथ आखिरी सांस तक लड़े, जसवंत सिंह को दुश्मन की ताकत का पूरा अंदाजा था पर उन्हें लगता था की वे जीत सकते है। जसवंत सिंह की वीरगाथा में ‘सेला और नूरा’ नाम के दो बहनों का जिक्र है. ऐसा कहते हैं कि चीनी सैनिकों से योध लड़ते हुए, जब उनके सारे साथी शहीद हो गए, तो उन्होंने सोचा की वह लड़ाई का तरीके बदलेगें। इसके लिए उन्होंने नई योजना बनाई.

वहीं जसवंत के प्लान के मुताबिक चीनी सैनिकों को ऐसा जताया गया कि भारतीय सेना के सभी जवान खत्म हो गए कोई नहीं बचा वहीं जसवंत सिंह ने गोल बारूद बंकरों में छुपा रखा था जब चीनी सैनिकों को ये बात पता चली तक वो बेखौफ होकर कब्जा करने के लिए बाहर निकले जिसका जसवंत कब से इंतेज़ार कर रहे थे बता दें जैसे ही चीनी सैनिक बाहर आये जसवंत उन्हें अपनी मशीनगन से भुनने में कामयाब हो गए उस समय जसवंत ने 300 चीनी सैनिकों को मार गिराया था। हालांकि जसवंत के इस पूरे पूरे प्लान में नूरा और सेला नाम की दो बहनों ने जसवंत का पूरा साथ दिया था उन्होंने जसवंत के रहने और खाने तक का बंदोबस्त किया था,

बता दें कि उस दिन जसवंत ऐसे लड़ रहे थे जैसे वो अकेले नहीं बल्कि पूरी बटालियन हो लेकिन सच तो यही है कि उस दिन अकेले जसवंत सिंह रावत ने 300 चीनी सैनिकों पर भारी पड़े थे, हालांकि अरुणांचल प्रदेश के लोग आज भी मानते हैं कि जसवंत सिंह रावत सहीद नहीं हुए बल्कि आज भी जिंदा हैं और सीमा पर तैनात हैं। हालांकि जसवंत सिंह की याद में वहां के लोगों ने जसवंतगढ़ का निर्माण किया।

बता दें कि, जसवंतगढ़ में एक ऐसा मकान है जिसके बारे में लोग कहते है की जसवंत सिंह इसमें रहते हैं. इस मकान में एक बिस्तर रखा हुआ है, जिसे पोस्ट पर तैनात सेना के जवान रोज सजाते हैं। उनके जूते भी रोज पॉलिश किए जाते हैं इतना ही नहीं आपको जानकर हैरानी होगी की, जसवंत एकलौते ऐसे शहीद है जिनका शहादत के बाद भी प्रमोशन होता है वे अभी मेजर जनरल के पद पर है। जसवंत को उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र जैसे बड़े सम्मान से सम्मानित किया गया।

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