रातो रात बदली किश्मत, एक चाय वाला बना 5 करोड़ का मालिक, जानिए कैसे

आज हम आपक एक चाय वाले के बारे में बताने जार है, ज्सिके बारे में सुनकर आप भी हेरान हो जायेगे I इसमे आप जान सकते है, की किस तरह से अंबाला में रहें वाले  उमेश भार्गव की किस्मत बदल गयी

हरियाणा में एक चाय वाला बना करोड़पति, जानिए किस तरह से अचानक बदल गई उसकी किस्‍मत I

आज हम आपक एक चाय वाले के बारे में बताने जार है, ज्सिके बारे में सुनकर आप भी हेरान हो जायेगे I इसमे आप जान सकते है, की किस तरह से अंबाला में रहें वाले  उमेश भार्गव की किस्मत बदल गयी I

कभी ईंट भट्ठे पर मजदूरी करने वाला आज करोडपति बन गया

उमेश भार्गव एक समय ईंट भट्ठे पर मजदूरी कर अपना जीवन यापन करता था I उसके बाद वह चाय की रेहड़ी लगाने लगा, उसके अचानक करोड़पति बनने का मामला अंबाला नगर निगम से जुड़ा हुआ है I अंबाला में नगर निगम के अधिकारियों की लापरवाही के कारण ईंट-भट्ठे पर काम करने वाला मजदूर करोड़पति बन गया।

आपको बता दे की जगदीश लाल ने कोर्ट में साबित कर दिया कि अंबाला-चंडीगढ़ नेशनल हाईवे पर खाली पड़ी बेशकीमती 10.5 एकड़ जमीन पर उसका कब्जा है। उसके बाद नगर निगम ने कोर्ट में सही तरह से केस की पैरवी ही नहीं की।

कोर्ट का आया यह फैसला

लिहाजा कोर्ट ने मजदूर के हक में फैसला सुनाते हुए कहा कि जगदीश लाल का 30 साल से ज्यादा समय से इस जमीन पर कब्जा है, इसलिए यह जमीन जगदीश के हक़ में जाती है I उसका कलेक्टर रेट यानी सरकारी रेट ही कृषि योग्य भूमि का 55 लाख रुपये प्रति एकड़ है। इस हिसाब से रिहायशी जमीन की कीमत प्रति एकड़ 2 करोड़ 68 लाख और कामर्शियल कीमत 3.66 करोड़ रुपये प्रति एकड़ बनती है

दरअसल, अंबाला-चंडीगढ़ नेशनल हाईवे पर स्थित गांव काकरू की 10.5 एकड़ जमीन है, यह जगह पहले कस्टोडियन (पाकिस्तान गए लोगों की जमीन जिसे केंद्र सरकार ने बाद में अपने संरक्षण में ले लिया था) यहा ईंट भट्ठे हुआ करता था, उसके बाद इस जमीं पर उसने झुग्गी बनाई फिर पक्का मकान बना लिया। 2004-05 के आसपास भट्ठा संचालक हरीश गुलाटी के यहां से चले जाने के बाद जगदीश लाल ने जमीन पर कब्जा ले लिया।

वर्ष 2009 में नगर निगम में शामिल हो गया यह क्षेत्र

वर्ष 2009 में गांव काकरू नगर निगम में शामिल हो गया। जगदीश लाल से किसी ने जमीन खाली नहीं करवाई। उसके बाद 2014 में नगर निगम ने जमीन खाली करवाने के लिए जगदीश को नोटिस भिजवाया, लेकिन उसने इसके खिलाफ कोर्ट में केस किया। उसने सुबूत के तौर बिजली का बिल, वोटर कार्ड, राशन कार्ड इत्यादि लगाए, जो इसी जमीन के नाम पर थे। जिसके बाद दो गवाह भी पेश किए, जिन्होंने माना कि जगदीश ने ही हरीश से जमीन पर कब्जा लिया था। वर्ष 2019 में कोर्ट में साबित हुआ कि इस जमीन पर जगदीश लाल का 30 साल से ज्यादा समय से कब्जा है। इसीलिए निगम जबरदस्ती इसे खाली नहीं करवा सकता।

नगर निगम ने कोर्ट में क्या खेला खेल

कोर्ट में केस के दोरान नगर निगम के वकील ने कहा कि जमीन पर जगदीश ने अवैध निर्माण किया है। फैसले में जज ने लिखा कि जब अवैध निर्माण है, तो इसका मतलब वहां निर्माण हो रखा है, जमीन खाली नहीं है। दूसरा जगदीश लाल द्वारा पेश किए गए सुबूत भी यह साबित करते हैं कि जमीन पर उसका 30 साल से ज्यादा समय से कब्जा है।

अभी कोर्ट द्वारा जगदीश के पक्ष में फेसला सुनाया है, इस समय कोर्ट से केस हारने के बाद नगर निगम ने कोर्ट के इस फैसले को चुनौती ही नहीं दी। इस तरह से से यह जमीन इस चायवाले की हो गयी और वह आज इस करोड़ो की जमीं का मालिक है I

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